ग्रामीण संस्कृति का विकास

                    SHASHANK SHARMA    
                                         
   
                Rise of rural settlements :
The first step to the success of human life 
               नवपाषाण काल में प्रारंभ हुई कृषि उपलब्धि ने हमें एक जगह स्थिर रहना सिखाया।
मनुष्य बार-बार घुमक्कड़-यायावर न रहकर एक जगह रहकर कृषि कर्म करने लग गया । मनुष्य के स्थिरता की कहानी भारतीय उपमहाद्वीप में करीब 6000 इसा पूर्व से प्रारंभ हुई  , और वैश्विक पटल पर 9000 ईसा पूर्व से। भारतीय उपमहाद्वीप में बलूचिस्तान स्थित "मेहरगढ़" पहली ग्रामीण बस्ती थी ,मेहरगढ़ पहला ऐसा गांव था जो नवपाषाण ( Neolithic ) और ताम्र  पाषाण( Chalcolithic ) का संक्रमण था अर्थात  जहां दोनों युग के अस्तित्व समाहित हो । किंतु नवपाषाण से होकर ताम्र पाषाण युग में आने पर धातुओं के प्रयोग से उन्होंने एक नई सभ्यता की शुरुआत की। लगभग सभी परिवर्तन उत्तर पश्चिमी भारत में हुए जो बाद में सिंधु सभ्यता के उत्थान और विकास के रूप में फलीभूत हुए। 
  मेहरगढ़ स्थल : 
                                    
Mehargarh Site
यह स्थल वर्तमान पकिस्तान के पश्चिम मे सिन्ध - बलूचिस्तान सीमा पर बोलन नदी के किनारे कच्छी मैदान मे स्थित है। इसका कालखंड  7000  से 3300 ईसा पूर्व माना जाता रहा है।
यहाँ से "कृषक समुदाय" के उद्भव के भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे प्राचीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं। यह स्थान अस्थायी मानव आवास के रूप प्रयुक्त हुआ था तथा सम्भवत: सातवीं सहस्त्राब्दी ई.पू. में यहाँ एक मानव बस्ती अस्तित्व में आ गयी थी।   
                                       
इन अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ के लोग गेहूँ एवं जौ की खेती करते थे तथा भेड़, बकरी एवं अन्य जानवर पालते थे। ". मेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है। भारतीय इतिहास में इस स्थल का महत्व अनेक कारणों से है। यह स्थल भारतीय उप महाद्वीप को भी गेंहूँ-जौ के मूल कृषि वाले क्षेत्र में शामिल कर देता है और नवपाषण युग के भारतीय काल निर्धारण को विश्व के नवपाषण काल निर्धारण के अधिक समीप ले आता है। इसके अतिरिक्त इस स्थल से सिंधु सभ्यता के विकास और उत्पत्ति पर प्रकाश पड़ता है। यह स्थल हड़प्पा सभ्यता से पूर्व का ऐसा स्थल है जहां से हड़प्पा जैसे ईंटों के बने घर मिले हैं और लगभग 6500 वर्तमान पूर्व तक मेहरगढ़ वासी हड़प्पा जैसे औज़ार एवं बर्तन भी बनाने लगे थे। निश्चित तौर पर इस पूरे क्षेत्र में ऐसे और भी स्थल होंगे जिनकी यदि खुदाई की जाए तो हड़प्पा सभ्यता के संबंध में नए तथ्य मिल सकते हैं। मेहरगढ़ से प्राप्त एक औज़ार ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। यह एक ड्रिल है जो बहुत कुछ आधुनिक दाँत चिकित्सकों की ड्रिल से मिलती जुलती है। इस ड्रिल के प्रयोग के साक्ष्य भी स्थल से प्राप्त दाँतों से मिले हैं। यह ड्रिल तांबे की है और इस नयी धातु को ले कर आरंभिक मानव की उत्सुकता के कारण इस पर अनेक प्रयोग उस समय किए गए होंगे ऐसा इस ड्रिल के आविष्कार से प्रतीत होता है। एक अन्य महत्वपूर्ण वस्तु है सान पत्थर जो धातु के धारदार औज़ार और हथियार बनाने के काम आता था। मेहरगढ़ से प्राप्त होने वाली अन्य वस्तुओं में बुनाई की टोकरियाँ, औज़ार एवं मनके हैं जो बड़ी मात्र में मिले हैं। इनमें से अनेक मनके अन्य सभ्यताओं के भी लगते हैं जो या तो व्यापार अथवा प्रवास के दौरान लाये गए होंगे। बाद के स्तरों से मिट्टी के बर्तन, तांबे के औज़ार, हथियार और समाधियाँ भी मिलीं हैं। इन समाधियों में मानव शवाधान के साथ ही वस्तुएँ भी हैं जो इस बात का संकेत हैं कि मेहरगढ़ वासी धर्म के आरंभिक स्वरूप से परिचित थे। दुर्भाग्य से पाकिस्तान की अस्थिरता के कारण अतीत का यह महत्वपूर्ण स्थल उपेक्षित पड़ा है। इस स्थल की खुदाई क्रमशः1974–1986, 1997–2000 ई० मे हुई थी, तथा प्रमुख पुरातत्ववेत्ता  जीन फ्रांसीस और कैथरीन जर्रिज है ।  यदि इसकी समुचित खुदाई की जाए तो यह स्थल इस क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास पर नए तथ्य उद्घाटित कर सकता है। अभी तक की इस खुदाई में यहाँ से नवपाषण काल से लेकर कांस्य युग तक के प्रमाण मिलते है जो कुल 8 पुरातात्विक स्तरों में बिखरे हैं। यह 8 स्तर हमें लगभग 5000 वर्षों के इतिहास की जानकारी देते हैं। इनमें सबसे पुराना स्तर जो सबसे नीचे है नवपाषण काल का है और आज से लगभग 9000 वर्ष पूर्व का है वहीं सबसे नया स्तर कांस्य युग का है और तकरीबन 4000 वर्ष पूर्व का है। मेहरगढ़ और इस जैसे अन्य स्थल हमें मानव प्रवास के उस अध्याय को समझने की बेहतर अंतर्दृष्टि दे सकते है जो लाखों वर्षों पूर्व दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ था और विभिन्न शाखाओं में बंट कर यूरोप, भारत और दक्षिण- पूर्व एशिया पहुंचा। 
                                      
Mother Goddess mehargarh

मेहरगढ़ का उजड़ना : लगभग 4000 ईसा पूर्व प्रकृति में कुछ ऐसे बदलाव आए , Changing the course of rivers नदियों का मार्ग बदलना, Famine, drought, natural disasters अकाल , सूखा , विभिन्न प्राकृतिक आपदाएं आदि समस्या रही जिससे मेहरगढ़ के लोगों ने एकाएक अपने क्षेत्र छोड़ दिए और सिंधु नहीं उपजाऊ क्षेत्रों में आ बसे जिनमें अामरी , सरायखोला , जलीलपुर आदि विभिन्न छोटी बड़ी बस्तियों में रहकर गेंहू और जो कि खेती करने लगे  । सिंधु के क्षेत्र में उन्हें अधिक लाभ मिला और परस्पर सहयोग व बस्तियों की आपसी तालमेल से उन्हें तेजी से विकास की  और उन्मुख किया ।
इसीलिए हम "मेहरगढ़" को नगरों का पितामह कहते हैं।
                                      
विकास का सामान्य विश्लेषण : 
    यहां हमने नवपाषाण क्रांति ( Neolithic revolution ) के बारे में देखा की कृषि के विकास में मनुष्य एक जगह स्थिर रहना सीख गया। परस्पर इन नवपाषाणिक बस्तियों में आपसी तालमेल होना स्वाभाविक था, इन आपसी संबंधों ने वस्तु विनिमय के व्यापार को प्रोत्साहन दिया । अब लोग दूर-दूर तक व्यापार की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते थे जिससे उन्हें दूर-दराज की उपियोगी वस्तुओं , खाद्य सामग्रियों, खनिज संसाधन मुख्यतः तांबा प्राप्त हुआ जिन के बदले यह अपने स्थान की कीमती वस्तुएं , माणिक , स्फटिक माला , कार्नेलियन के मनके अथवा खाद्य पदार्थ आदि माल देते थे । 
        उदाहरण स्वरूप यदि कहा जाए तो हड़प्पा के निकटवर्ती क्षेत्र कोटदिज्जी , आमरी , जलीलपुर , सरायखोला  (यह सभी क्षेत्र प्राक: हड़प्पा ( Pre-Harappan ) स्थल है ) आदि क्षेत्रों के व्यक्ति अपने मालों को ऊंटों,बेल गाड़ियों पर  लाद कर  पूर्व की और बस्तियों में जाते है जहां उनका बीकानेर - हनुमानगढ़ की सोत्थी संस्कृति ( Pre Kalibanga Harappan ) से मिलाप होता है जिससे पश्चिमी घुमक्कड़ व्यापारियों चरवाहों को वहां के संसाधनों की जानकारी मिलती है, यह बदले में अपना माल देकर उनसे माल खरीदते हैं । पश्चिमी घुमक्कड़ चरवाहों-व्यापारियों को झुंझुनू स्थित खेतड़ी तथा सीकर की ताम्र धातु की जानकारी मिलती है , जहां सिंधु घाटी के ग्रामीण लोग जो और गेंहू तथा अन्य वस्तुएं उन्हें देकर तांबा धातु, ताम्र उपकरण इत्यादि वस्तु विनिमय ( barter system )से अदला बदली कर लेते है । इस प्रकार इन सभी ग्रामीण बस्तियों में परस्पर व्यापारिक सबंध साझा हुए जो शहरों के विकास के कारगर बने।
                                    
उत्तर - पश्चिमी देशों से संबंध :
                                      
Trade & Transportation Harappan Indus

सबसे महत्वपूर्ण घटना इन ग्रामीण बस्तियों का इराक़ स्थित दहला - फरात नदी घाटी में मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता से व्यपारिक संबंध होना था । सुदूर पश्चिम में प्रारम्भिक हड़प्पाई ग्रामीण बस्तियां सुतकागेंडोर ( मकरान तट ), सोत्काकोह, राणा घुंडई आदि ईरान और इराक से परिचित थे साथ ही जहाज निर्माण कला की तकनीकी जानकारी भी उन्हें थी इसका कारण उन बस्तियों का तटीय इलाकों में बसना था। दूसरी और उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान स्थित ग्रामीण बस्तियों को भी स्थल मार्ग से इराक़ और ईरान की जानकारी थी । फलस्वरूप हमारे पूर्वज ( ग्रामीण नागरिक ) अपने ऊंटों , बेल गाड़ियों , जहाजों आदि से  मेसोपोटमिया की यात्रएं करते रहे वस्तु विनिमय ( barter system ) चीजों का आदान प्रदान करते रहे । इन ग्रामीण घुमक्कड़ व्यापारियों को इराक़ में अरब देशों दिलमुन ( बहरीन ) व मिस्र ( Egypt ) , सीरिया आदि देशों के साथ भी संबंध बने , जहां उन्होंने शहरी विकास , स्थापत्य , नगर योजना , मंदिर , चिकित्सा आदि देखे और समझें । सभी देश विदेश भ्रमण करने के बाद हमारे पूर्वजों ने अपने ढंग से सहजता और वैज्ञानिक पद्धति से सुनियोजित शहरों का निर्माण किया , उत्तम जल निकास प्रणाली जो किसी भी पश्चिमी देश में सुव्यवस्थित नहीं थी , सुनियोजित सड़क निर्माण , भवन निर्माण आदि सभी देशों से भिन्न एवं दुनिया में सबसे बेहतरीन थे जो आज भी समृद्ध अवशेषों के रूप में हमें उस शानदार जीवन  की प्रत्येक घटनाओं का  सजीव चित्रण करते है।आपसी तालमेल के इस संबंध ने न केवल दैनिक आवश्यकताएं ,व्यपार - कृषि में तकनीकी परिवर्तन किया बल्कि सुनियोजित नगरों की भी निव रखी। सभ्यता के इस प्रथम दौर में सामान की आवाजावी के लिए बस्तियों के व्यापारिक प्रधान कि एक विशिष्ट प्रकार की सिल भी होती थी , जिसके हमें पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं जो चिकनी गीली मिट्टी पर लगाकर सीलबंद की जाती थी।समृद्धि की और बढ़ते हुवे क़दमों ने एक विशिष्ट लिपि को भी मान्यता दी जो भावचित्रात्मक थी किन्तु अभी तक हमें उसे समझने में कामयाबी नहीं मिली अत: प्रथम नागरिय आद्य ऐतिहासिक काल ( Protohistory period )में रखा गया है।
                                     
Mohenjo Daro site
                                  शशांक शर्मा
In English : https://historyindian2020.blogspot.com/2020/06/development-of-rural-culture.html?m=1


SOURCES :  (A )
https://bcindusvalleycivilization.weebly.com/trade-and-transportation.html
 ( B) https://blog.nationalgeographic.org/2013/04/17/revealing-india-and-pakistans-ancient-art-and-inventions/
( C )
 http://en.turkcewiki.org/wiki/Mehrgarh#/media/File:Statuette_Mehrgarh.jpg
                                  

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