STONE AGE : प्रस्तर युग [ बर्बरता से सभ्यता की और ]

SHASHANK SHARMA
                              STONE AGE
                                     


  प्रस्तर युग : STONE AGE 
प्रागैतिहासिक काल: ( prehistoric Period )
     प्रागैतिहासिक काल से तात्पर्य वह काल जिसका कोई लिखित साक्ष्य या रिकॉर्ड हमें प्राप्त ना हुआ हो व्यक्ति सिर्फ पाषाण खंडों पर निर्भर रहा है , अर्थात मनुष्य की सारी आवश्यकता है मुख्यतः उस वातावरण पर निर्भर होती है जिसमें वह जीवित रहने का प्रयत्न करता है ।
 ★ मूलत: इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है:
( 1) प्रागैतिहासिक काल ( prehistoric age )
( 2) आद्यऐतिहासिक काल ( Proto historical period )
( 3) ऐतिहासिक काल ( historical period )
              प्रकार प्रागैतिहासिक काल के अध्ययन के लिए हमें उनके द्वारा लिए गए पाषाण उपकरणों पर निर्भर रहना पड़ता है, पाषाण उपकरण हमें नदियों के पाट , कंदराएं, गुफाएं , नदी घाटियों आदि क्षेत्र में मिलते हैं ।

Classification of prehistory :
प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में बांटा गया है
( A ) पुरापाषाण युग/ काल
( B ) मध्यपाषाण युग/ काल
( C ) नवपाषाण युग/ काल

मनुष्य के संस्कृति निर्माता पूर्वज लगभग 50 लाख वर्ष पूर्व हुए । इनमें से अधिकांश अत्यंत पुरानी तिथियां प्राकृतिक विज्ञान अनुसंधान से प्राप्त की जाती है। भूवैज्ञानिक की दृष्टि से पृथ्वी करीब 48 अरब वर्ष पुरानी है, और इस पर जीवन का आरंभ कोई 35 अरब वर्ष पहले हुआ। अतः पृथ्वी की भूवैज्ञानिक समय सारणी को महाकल्पों ( Eras ) में विभाजित किया है। इन प्रत्येक महाकल्प को अनेक कल्पों ( Periods ) में विभाजित करते हैं , और प्रत्येक कल्प अनेक युगों ( Epochs ) में बांटा जाता है । Geologist - भू वैज्ञानिक इतिहास में पृथ्वी के अंतिम महाकल्प को "नूतनजीव महाकल्प" ( Cenozoic Era ) की संज्ञा देते हैं। पुरापाषाण युग में मनुष्य की गतिविधियां लगभग प्लिस्टोंसिन युग 1.64 से 0.01 मिलियन वर्ष पूर्व ( हिम युग ) में प्रकाश में
 आई ।
                                 
( A ) पुरापाषाण काल Palaeolithic period : यह प्लिस्टोसिन से आरंभ होकर बर्फ पिघलने से घास के मैदानों के प्रारंभ तक चला । इसका कोई निश्चित कालखंड नहीं है किंतु 20 लाख वर्ष पूर्व से 12000 वर्ष पूर्व तक माना जाता है । इस काल में मनुष्य का जीविकोपार्जन आखेटन और संग्रहण था, जीवन शैली यायावरीय या प्रवासी जीवन (Travel or migrant life)  था।

Major stone equipment : प्रस्तर उपकरण प्रस्तर उपकरण
   कुल्हाड़ी , विदारिनी , अलग अलग तरह के खंदक ( निम्न पूरा पाषाण काल ), पुरापाषाण से थोड़े विकसित औजार मध्य पुरापाषाण युग में थे, यह विविध प्रकार के पकड़ियों से बने फलक , बेधनी और खुरचनी थे। उत्तर पुरापाषाण युग के औजार माइक्रोलिथ तथा पत्थर के काफी छोटे औजार थे जो काफी मात्रा में पाए गए।
Related site: सोन नदी के पोटवार का क्षेत्र ( सोहन संस्कृति ) , व्यास एवं बानगंगा घाटी, नेवासा, प्रवरा में नागार्जुनकोंडा , मद्रास में वदमदुरई, अतेरामपक्कम , साखी महानदी के उत्तरी तट आदि
Tools Technology :
      औजार तकनीकी के संदर्भ में भारत में लगभग 35000 वर्ष पूर्व एक नई तकनीक पुरापाषाण युग से निकली। वे शल्क पपड़ी या उससे ही मिलते पिंडों से बनाए जाते थे जैसे चकमक हथियार, चीनी मिट्टी इत्यादि ।
Tool Types :
  प्रस्तर उपकरण बनाने के लिए एक उपयुक्त पत्थर चुना जाता था फिर सुविधाजनक बटिकाशम (Pebble ) से हथौड़ी की तरह उस पर चोट की जाती थी। अतः इस प्रकार पत्थर का छोटा सा टुकड़ा अलग हो जाता था, जिस पर बार-बार चोट करके उसे अभीष्ट रूप में ढाला जाता था जिसे क्रोड ( Core ) कहा जाता है । और उससे जो छोटे-छोटे टुकड़े उतारे जाते थे उन्हें शल्क ( Flakes ) कहा जाता है।
मुख्य स्थल : प्लिस्टोसीन काल से जुड़े महाराष्ट्र पुणे के कुकदी घाटी यहां बोरी गांव के पास 8 ज्वालामुखी राख छिद्र मौजूद है , रिवात रावलपिंडी पाकिस्तान, झेलम के पूर्व में पब्बी  हिल्स , शिवालिक पहाड़ियां।
    इस प्रकार मानव पुरापाषाण युग में घुमक्कड़- यायावर जीवन व्यतीत करता था , तथा बड़े बेडौल पत्थरों से शिकार करता था । इस युग में कोई विशेष प्रस्तर उपकरण तकनीकी परिवर्तन नहीं दिखाई देता। इस युग की महत्वपूर्ण घटना " आग " का आविष्कार है ।
( B) मध्यपाषाण काल mesolithic age :
मध्यपाषाण का कालखंड 12000 से 10,000 ईसा पूर्व माना जाता है , यह काल पुरापाषाण तथा नवपाषाण का संक्रमण काल भी माना जाता है । काल में जलवायु परिवर्तन के साथ बड़े पैमाने पर घास के मैदानों का उदय हुआ, जो मानव जीवन के अनुकूल थे । हिमयुग Pleistocene Era की समाप्ति के साथ ही बड़े पैमाने पर मवेशी भी प्रकाश में आए जो मध्यपाषाण युग के अंत तक पशु चारण संस्कृति Pastoral culture का एक अहम हिस्सा बने । जलवायु में इन परिवर्तनों की श्रंखला के साथ जो सबसे पहले मौलिक परिवर्तन आया वह था प्रक्षेपास्त्र तकनीक ( Microlith Tools Technology ) के विकास का प्रयास। सामान्य भाषा में हम इसे भाले का पूर्वगामी में भी कह सकते हैं। जो डाल पर बैठे पक्षी या नदियों में तैरती मछली पर भी शिकार कर सकता है।
                                 
प्रक्षेपास्त्र  Microlith technology तंत्र के अंतर्गत विशेष रूप से तैयार किए गए बेलनाकार क्रोडो ( Cylindrical Cores ) पर दबाव डालकर पहले लघु शल्क उतारे जाते थे और फिर फलक ( Blades ) बनाए जाते थे जो करीब 5सेमी. लंबे और 12 मिली मीटर चौड़े होते थे। इस विशिष्ट तकनीक को नाली अलंकरण तकनीक ( Fluting Technique ) कहां जाता है। ( प्रोफेसर  द्वीजेंद्र नारायण झा , कृष्ण मोहन श्रीमाली इतिहास विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय , प्राचीन भारत का इतिहास Page no. 66 )
                             
Major Tool : Microlithic tool अंतर्गत पाषाण कालीन प्रकार के पिग्मी रूपान्तरों ( बेधनी ( Point ), खुरपी, सुआ, तक्षनी आदि ) के साथ-साथ अर्धचंद्राकार ( Lunate ), समचतुर्भुज, समलंब ( Trapeze ) एवं त्रिभुजाकार जैसी ज्यामितीय आकृतियां भी शामिल है।
 Major Excavations Site : 
प्रमुख स्थलों में राजस्थान उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार के सीमित क्षेत्रों तथा उत्तर प्रदेश से गुजरात तक मध्य भारतीय उच्च भूमि में प्राप्त गुफा चित्रों की श्रेणी में दिखाई देते हैं , 6000 ईसा पूर्व के दो स्थलों बागोर, आदमगढ़ से ज्ञात होता है कि पशुपालन की शुरुआत हो चुकी थी और लोग अपनी आखेटन गतिविधियों को एक सीमा तक त्याग चुके थे। पश्चिमी बंगाल में बीरभानपुर गुजरात में लंघनाज और तमिलनाडु में टेरी समूह मध्य पाषाण की स्थल है।
मध्य पाषाण युग के अंत तक आते-आते हमें पशुपालन जीवन के भी साक्ष्य मिलते हैं, राजस्थान बागोर ( भीलवाङा ) – बागोर एवं आदमगढ से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ एवं इलाहाबाद के निकट सराय नाहर राय एवं महादहा अब तक के ज्ञात भारत के सबसे पुराने मध्य पाषाण कालीन स्थल है जिनका रेडियो कार्बन तिथि ईसा पूर्व 8395 पाई गई है पाई गई है।  दक्षिण में  संगेनकल्लू, रेणीगुंटा , तिन्नेवेली मध्यपाषाण युगीन अवशेष मिले हैं ।
पूर्वी भारत में मयूरभंज , सुंदरगढ , सेबालगिरि से मध्यपाषाण युगीन पुरातात्विक अवशेष मिले
 हैं ।

Cave Painting : प्रारंभिक मध्य पाषाण संस्कृति के साथ गुफा चित्रकारी की कला भी जोड़ी जाती है, विंध्यांचल के शैलाश्रयों और गुफाओं मैं अनेक ऐसे प्रागैतिहासिक चित्र मिले हैं जिनमें आखेट नृत्य और युद्ध की गतिविधियां प्रदर्शित की गई है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण भीमबेटका का नाम आता है,
ये गुफ़ाएँ भोपाल ( M.P. )  से 46 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में मौजूद है। गुफ़ाएँ चारों तरफ़ से विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका संबंध मध्य पाषाण काल से संबंधित है । भीमबेटका की गुफाओं का कालखंड 12000 ईसा पूर्व है।इनकी खोज वर्ष 1957-1958 में 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' द्वारा की गई थी।
                                 
भीमबेटका गुफ़ाओं की विशेषता यह है कि यहाँ कि चट्टानों पर हज़ारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी आज भी मौजूद है और भीमबेटका गुफ़ाओं में क़रीब 500 गुफ़ाएँ हैं।भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
 
( C ) नवपाषाण काल : Neolithic Period
                                   

          खाद्य उत्पादन पर आधारित व्यवस्थित जीवन सबसे पहले उत्तर पश्चिम में प्रारंभ हुआ यहीं से ही मनुष्य ने अपना विकास किया। खाद्य उत्पादन से नवपाषाण-ताम्रपाषाण युगीन ग्रामीण संस्कृति का विकास हुआ । पाषाण ग्रामीण जीवन का बीजारोपण मध्य पाषाण अंत में हो गया था ।
नवपाषाण अर्थव्यवस्था का आधारभूत तत्व खाद्य उत्पादन तथा पशुओं को पालतू बनाने से संबंधित है। नवपाषाण काल का कालखंड 1000 ईसा पूर्व से प्रारंभ होकर ताम्रपाषाण युग ( Chalcolithic age ) तक चलता रहा। नवपाषाण युग में अपवाद स्वरूप कश्मीर श्रीनगर का एक स्थल बुर्जहोम कहां लोग 2400 वर्ष पूर्व तक भी नव पाषाण संस्कृति को नहीं दर्शाते वे अब भी आखेटक ( शिकारी ) थे। पुरातात्विक विद्वानों ने नवपाषाण युग को एक क्रांति की संज्ञा दी है।
                                 
प्रमुख स्थल:
नवपाषाण काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में 'ली मेसुरियर' (Le Mesurier) ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके बाद 1872 ई. में 'निबलियन फ़्रेज़र' ने कर्नाटक के बेलारी क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु थे- कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।
Facts related to Neolithic period:
                                      

      नवपाषाण काल को जॉन लुबाक ने नवपाषाण संस्कृति क्रांति संज्ञा दी है। तथा गॉर्डन चाइल्ड ने भी यही कहा है। इसका कारण यह है कि इस काल में मानव खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक की श्रेणी में आ गया था ।
इस काल में कृषि व पशुपालन का विकास हुआ ।
कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य मेहरगढ (ब्लूचिस्तान, पाकिस्तान) से प्राप्त हुए हैं ।
इस काल में स्थाई निवास के प्रमाण मिले हैं। गेहूँ तथा जौ भी इसी काल में मिले हैं तथा खजूर की एक किस्म भी प्राप्त हुई है। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूँ व जौ हैं।
पहिए का आविष्कार नवपाषाण काल में हुआ।
इस काल से ही पता चलता है कि मनुष्य ने सबसे पहले कुत्ते को पालतू बनाया । कृषि कार्य के लिए पत्थर के उपकरण अधिक धारदार व सुघङ बनने लगे । उन पर पोलिश भी होने लगी ।
अनाज के उत्पादन से जीवन में स्थायित्व की प्रवृत्ति आई तथा ग्राम संस्कृति की स्थापना हुई।

अन्य स्थल : नवपाषाण काल के अन्य स्थलों में

ब्लुचिस्तान – मेहरगढ, सरायखोल

कश्मीर – बुर्जहोम, गुफ्कराल

उत्तरप्रदेश – कोल्डीहवा, चौपातीमांडो, महागरा

बिहार – चिरांग

बंगाल – ताराडीह, खेराडीह, पाण्डु,मेघालय, असम, गारोपहाङियाँ

दक्षिणी भारत से –  कर्नाटक में मास्की, ब्रह्मगिरी, टेक्कलकोट्टा, संगेनकल्लू

आंध्रप्रदेश – उत्तनूर

तमिलनाडु – पोचमपल्लि
 
दक्षिणी भारतीय नवपाषाण स्थलों की प्रमुख विशेषता है, गोशाला की प्राप्ति एवं राख के ढेर की प्राप्ति।

उत्तर – पश्चिमी क्षेत्र में नवपाषाणयुगीन सभ्यता की प्रमुख विशेषता गेहूं और जौ का उत्पादन, कच्ची ईंटों के आयताकार मकान, बङे पैमाने पर पशुपालन आदि हैं। इसी क्षेत्र में 5000ई.पू. के बाद से मृदभांडों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो भारत में उपलब्ध  प्राचीनतम हैं।

बुर्जहोम – यहाँ से गर्त्त-आवास, विविध प्रकार के मृदभांड, पत्थर के साथ-साथ हड्डियों के औजार, गेहूं व जौ के अलावा मसूर,अरहर, का उत्पादन, औजारों पर पॉलिश आदि के अवशेष मिले हैं। यहां से मनुष्य की कब्र में कुत्ते को भी साथ दफनाए जाने के साक्ष्य मिले हैं।

गुफ्कराल  यहाँ से भी गर्त्त – आवास के साक्ष्य मिले हैं।

विन्ध्य क्षेत्र में बेलन घाटी क्षेत्र औऱ मिर्जापुर में भी नवपाषाण युग के अनेक स्थल मिले हैं।

कोल्डीहवा(उ.प्र.)- यहाँ से चावल के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं।

कोल्डीहवा(उ.प्र.)- यहां से मृदभांडो के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं और झोंपङियों के भी साक्ष्य मिले हैं।

चिरांद (बिहार) से सर्वाधिक मात्रा में हड्डी के उपकरण मिले हैं। यहां से टोराकोटा की मानव मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।

असम व मेघालय में नवपाषाणयुगीन महत्तवपूर्ण स्थल प्राप्त हुए हैं। इस क्षेत्र से प्राप्त मृदभांड विशिष्ट हैं जिन पर रस्सी से चिह्नित किया गया है और मोती चिपकाएं गए हैं।

दक्कन में चंदेली, नेवासा, दायमाबाद, ऐरण, जोखा आदि नवपाषाण स्थल रहे थे । यहां के मानव धातुयुग में प्रवेश कर गए थे।

दक्षिण भारत में नागार्जुन, मास्की, पिक्कीहल, ब्रह्मगिरि, हल्लुर आदि प्रमुख बस्तियां थी।

जहाँ उत्तर भारत में गेहूँ , जौ एवं चावल के साक्ष्य मिले हैं वहीं दक्षिण भारत में रागी के साक्ष्य मिले हैं ।

विश्व स्तर पर लगभग 9000वर्ष पूर्व नवपाषाण काल की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन भारत में इसकी शुरुआत 7000 ई.पू. में मानी जाती है।

दक्षिण भारत में नवपाषाण काल लगभग 1100/1000 वर्ष पूर्व तक चलता रहा। यहाँ नवपाषाण काल के बाद ताम्र पाषाण काल अनुपस्थित है और महापाषाण काल (लौह काल) के साक्ष्य मिलते हैं।
    नवपाषाण युग के लोगों की सबसे बड़ी मजबूरी थी कि वह पत्थरों पर आश्रित थे , इसलिए पहाड़ी क्षेत्रों से दूर नहीं रह पाते थे। किन्तु नव पाषाण से होकर ताम्र पाषाण युग में आने पर धातुओं के प्रयोग से उन्होंने एक नई सभ्यता की शुरुआत की जिसे हम उदाहरण के लिए "सिंधु सभ्यता" का नाम दे सकते हैं।
                                   
 
 Conclusion :
       इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानव ने धीरे-धीरे अपने आप को विकसित करके यायावर बर्बरता से स्थाई जीवन की और गहन परिश्रम करते हुए कदम रखा , मानव जीवन की एक अद्भुत महान क्रांति है । यायावरीय जीवन से शुरुआत करके मानव ने विभिन्न प्रस्तर उपकरणों में तकनीकी परिवर्तन करते- करते सूक्ष्म और तीक्ष्ण औजार बनाएं ,  आगे चलकर पशुपालक कृषि उत्पादन को प्रोत्साहन दिया एक समृद्ध ग्रामीण संस्कृति का विकास किया । स्थाई जीवन के पश्चात मानव समूह में एकता होने लगी और साथ ही आपसी परस्पर संबंध स्थापित होने लगे जिससे व्यापार-वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला और धीरे-धीरे शहरों का विकास हुआ तथा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे विशाल महानगरों की स्थापना हुई । तकनीकी परिवर्तन में धीरे-धीरे व्यक्ति ने चिकित्सा , विज्ञान, स्थापत्य , कला, नगर नियोजन प्रणाली, जल निकासी, सफाई और स्वच्छता, जहाजों और नाव का आविष्कारआदि सब किए जिससे बड़े-बड़े साम्राज्यों का उदय हुआ।         
                                     
शशांक शर्मा

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

ग्रामीण संस्कृति का विकास

मानव अस्तित्व की पहचान