अतीत में पर्यावरणीय संबंध

शशांक शर्मा :

भारत या किसी भी क्षेत्र विशेष का यदि ऐतिहासिक शोध की रूपरेखा बनाई जाए ,तो अध्यन में हम पाएंगे की किस प्रकार इतिहास और पर्यावरण पारिस्थितिक संबंध  बनाए रखते है ।
यदि किसी भी क्षेत्र को देखे तो हमे कहीं समृद्ध संस्कृति और सभ्यता के दर्शन होते है तो कहीं आदिम बर्बर जनजाति के दर्शन होते है ।
भौतिक क्षेत्र का ऐतिहसिक आध्यन से पता चलता है , उसकी सीमा में कितने प्राकृतिक और मूल संसाधन भौतिक परिवर्तन के प्रभावी घटक है । उदाहरण स्वरूप " मीठे पानी की नदी और उसका उपजाऊ डेल्टा , वहां पाए गए प्राकृतिक खनिज सम्पदा ( लोहा , कोयला , तांबा ) , जंगली जानवर मवेशी इत्यादि व उस क्षेत्र की सुदृढ़ भौगोलिक सीमाएं आदि जैसे प्राचीन मगध साम्राज्य " आदि मूलभूत सुविधाओं से एक समृद्ध संस्कृति पनपती है और देखते ही देखते विशाल साम्राज्य में बदल जाती है ।
    यदि उत्तर-पश्चिम की बात की जाए तो हमने पढ़ा अथवा देखा पारिस्थितिकी परिवर्तन से ( नदियों का मार्ग बदलना , नदियों का सुखना , क्रमशः सूखा , अकाल , आक्रमण ) से बड़ी बड़ी सभ्यताएं पतनावस्था में आ पहुंची तत्पश्चात जनमानस ने मीठे पानी की तलाश में , समृद्ध उपयुक्त जलवायु , उपजाऊ भूमि के लिए पूर्व की ओर विसरणवादी सिद्धांत को अपनाया , ये लोग अपने साथ अपनी संस्कृति और तकनीकी परिवेश भी लेकर आए तथा मिश्रण सांस्कृतिक बदलाव प्रारंभ हुवे ।     Shashank Sharma

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