मानव अस्तित्व की पहचान

IDENTIFICATION OF HUMAN EXISTENCE
SHASHANK SHARMA.                                       
 
"मानव सभ्यता का उद्भव "
"Stone age"
भारत में मानव अस्तित्व की पहचान :
मानव जीवन काफी समय पहले प्रारंभ हुआ इसका अधिकांश क्रियाकलाप अलिखित ही रहा और यही अलिखित भूतकाल प्राक: इतिहास की रचना करता है। आज वर्तमान परिवेश में मानव इतिहास का एक छोटा सा काल है जो लिखित रूप से मौजूद है जो इतिहास का निर्माण करता है, अर्थात मानव इतिहास की संपूर्ण 90% घटनाएं प्रस्तर युग में ही घटित हुई । इसका प्रमाणिक साक्ष्य सिर्फ पाषाण-प्रस्तर उपकरण (stone tools) और आदिम भित्ति चित्रकारियां जो किसी शिकार अथवा समारोह से संबंधित है। 

Radiation theory : विकिरण प्रक्रिया 
 आधुनिक मानव का विकास अफ्रीका में "होमोइरेक्टस" से हुआ, बाद में यह विभिन्न मार्गों से प्रवासन करते हुए पृथ्वी के विभिन्न भागों में बस गए जिसे विकिरण सिद्धांत कहा गया है । पृथ्वी के सभी क्षेत्रों वह जातियों के मानव डीएनए को लगभग सामान योग्य पाया गया है जो यह संकेत देता है कि हमारी प्रजातियां उत्पत्ति का एक अद्यतन व सामान्य बिंदु रखती है।

Parallel development :
समांतर विकास के संदर्भ में आधुनिक मानव का विकास एक ही समय में "होमोइरेक्टस" जनसंख्या के समांतर (Parallel ) फैलाओ से हुआ। इन क्षेत्रीय जनसंख्या समूह में आपसी अंत: संपर्क की प्रक्रिया Mutual interaction चलती रही थी । जीवाश्म प्रमाणों से इस सिद्धांत की पुष्टि होती है।

Evidence of human fossils: 
मानव जीवाश्म के प्रमाण, अफ्रीका को मानव जाति का पालना या मूल स्थान कहा जाता है। anthropologist मानव शास्त्रीय को हादार, ओल्डुवाई , लितोली से खुदाई में प्राचीनतम मानव कंकाल प्राप्त हुए हैं। इथोपिया के हादार में मादा कंकाल सर्वाधिक संरक्षित मानव अवशेषों में से एक है,  एंथ्रोपॉलजिस्ट विद्वानों ने इस मादा कंकाल के 40% हिस्से को एकत्रित किया और इसे "लकी" उपनाम दिया। लकी को ऑस्ट्रेलोपीथिकस की श्रेणी में रखा गया ।

Evidence of hathnoora: 
हथनोरा का प्रमाण एक भूगर्भ शास्त्री द्वारा 1982 में नर्मदा घाटी के हथनोरा (मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के निकट) मैं एक जीवाश्म की खोज कर के उप महाद्वीप को मानव जीवाश्म प्राप्ति स्थलों के वैश्विक मानचित्र पर अंकित कर दिया गया। खोजकर्ता के अनुसार हथनोरा प्रमाण या नर्मदा का मानव कंकाल प्लिस्टोसीन ( हिमयुग) तक जाता है, यह जीवाश्मो की होमोइरेक्टस शाखा से जुड़ा है।
नर्मदा घाटी के कंकाल की विकासमूलक अवस्था के संबंध में एक गहरा विवाद है कि यह होमो इरेक्टस है या आधहोमोसेपियंस है।

" विकास की गतिविधियां "

पृथ्वी के 4.5 अरब साल इतिहास को भू-वैज्ञानिक कई खंडों में बांट कर देखते हैं।इन्हें कल्प (इयॉन),  (एरा), अवधि (पीरियड) और युग (ईपॉक) कहते हैं। इनमें सबसे छोटी इकाई है ईपॉक। मौजूदा ईपॉक का नाम होलोसीन ईपॉक है, जो 11700 साल पहले शुरू हुआ था। इस होलोसीन ईपॉक को तीन अलग-अलग कालों में बांटा गया है- अपर, मिडल और लोअर। इनमें तीसरे यानी लोअर काल को मेघालयन नाम दिया गया है।

मानवाकार सभी जीवाश्म भूगर्भ के विभिन्न स्तरों से प्राप्त हुए है। अतएव मानव विकास काल का निर्धारण इन स्तरों (शैल समूहों) के अध्ययन के बिना नहीं हो सकता। ये स्तर पानी के बहाव द्वारा मिट्टी और बालू से एकत्रित होने और दीर्घ काल बीतने पर शिलाभूत होने से बने हैं। इन स्तरों में जो भी जीव फँस गए, वो भी शिलाभूत हो गए। ऐसे शिलाभूत अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्मों की आयु स्वयं उन स्तरों की, जिनमें वे पाए जाते हैं, आयु के बराबर होती है। स्तरों की आयु को भूविज्ञानियों ने मालूम कर एक मापसूचक सारणी तैयार की है, जिसके अनुसार शैलसमूहों को 5 बड़े खंडों अथवा महाकल्पों में विभाजित किया गया :

हेडियन (Hadean)

आद्य (Archaean)

पुराजीवी (Palaeozoic)

मध्यजीवी (Mesozoic)

नूतनजीवी (Cenozoic) महायुग।

इन महाकल्पों को कल्पों में विभाजित किया गया है तथा प्रत्येक कल्प एक कालविशेष में पाए जानेवाले स्तरों की आयु के बराबर होता है। इस प्रकार आद्य महाकल्प एक "कैंब्रियन पूर्व" (Pre-cambrian), पुराजीवी महाकल्प छह 'कैंब्रियन' (Cambrian), ऑर्डोविशन, (Ordovician), सिल्यूरियन (Silurian), डिवोनी (Devonian), कार्बोनी (Carbniferous) और परमियन (Permian), मध्यजीवी महाकल्प तीन ट्राइऐसिक (Triassic), जूरैसिक (Jurassic) और क्रिटैशस (Cretaceous) और नूतनजीव महाकल्प पाँच आदिनूतन (Eocene), अल्प नूतन (Oligocene), मध्यनूतन (Miocene), अतिनूतन (Pliocene) और अत्यंत नूतन (pleistocene) कल्पों में विभाजित हैं।

Stages of human development:
  होमो हैबिलिस के खोजकर्ता जॉन नेपियर  के मतानुसार 1964 ई. में मनुष्य का विकास पांच अवस्थाओं से होकर गुजरा है :

(1)  (early prehuman), कीनियापिथीकस (अफ्रीका से प्राप्त) और (भारत से प्राप्त) रामापिथीकस (Ramapithecus) के जीवाश्मों द्वारा जाना जाता है। ये मानव संभवत: मनुष्य के विकास के अति प्रारंभिक अवस्थाओं में थे।

(2)  (late prehuman), का प्रतिनिधित्व अफ्रीका से प्राप्त ऑस्ट्रैलोपिथीकस (Australopithecus) करता है,

(3) प्रारंभिक मनुष्य को अफ्रीका से ही प्राप्त होमोइहैबिलिस द्वारा जाना जाता है,

(4) (late human) के अंतर्गत होमोइरेक्टस (Homo-erectus), अथवा जावा और चीन के मानव, आते हैं और

(5) आधुनिक मानव / होमो सेपियन्स (modern human), का प्रथम उदाहरण क्रोमैग्नॉन मानव में प्राप्त होता है।

आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले , सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे।

होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का निएंडरथल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवत: उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है।

 conclusion :
 विभिन्न स्रोतों के अध्ययन से पता चलता है कि मनुष्य की गतिविधियां लगभग 250000 वर्षों पहले भारत में शुरू हो गई थी। और प्रागैतिहासिक कारों ने इस पर गहन अध्ययन कर जलवायु संबंधी परिवर्तन का प्रभावी कारण बताया है। भारतीय पुरातात्विक अध्ययन से पुष्टि होती है सोन नदी घाटी उत्तर पश्चिमी पंजाब, नेवासा, प्रावरा घाटी, आंध्र प्रदेश की  गुंडलकम्मा घाटी में गुडलुर, कृष्णा घाटी में नागार्जुनकोंडा, मद्रास के तटीय क्षेत्र उड़ीसा के महानदी के उत्तरी तट आदि अनेकों नदी घाटियों के क्षेत्र है जहां से हमें प्रस्तर युगीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं इसकी पुष्टि हम पुरापाषाण युग में करेंगे जिसका हम आगे अध्ययन करेंगे।

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